रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली, पुरस्कार

यहां रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली, और पुरस्कार के बारे में विस्तार से जानेंगे, चलिए रामधारी सिंह दिनकर के बारे में जानते है।

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay)

हिन्दी जगत को रश्मिरथी जैसी महान रचना देने वाले कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, गंगा नदी के किनारे बसे मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान किसान परिवार ‘रवि सिंह’ तथा उनकी पत्नी ‘मनरूप देवी’ के घर हुआ था।

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय उनकी कविताओं की तरह एकदम राष्ट्रवाद की भावना से भर देने वाला है। दिनकर जी एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से चूर कवि के रूप में जाने जाते थे।

दिनकर जब महज 2 साल के थे उसी दौरान इनके पिता रवि सिंह जी का देहांत हो गया जिस कारण इनके पालन पोषण का जिम्मा इनकी विधवा माता ने उठाया, दिनकर जी का बचपन बहुत कठिनाइयों से गुजरा है।

दिनकर जी परिवर्तनशील और मानवता वादी जीवन दर्शन की बात करते है और उनके यही सिद्धांत उनकी कविताओं में देखे जा सकते है, 1947 तक दिनकर जी एक प्रखर राष्ट्रवादी कवि के रूप में विख्यात हो चुके थे, ऐसे में देश जब अंग्रेज़ो की गुलामी से आजाद हुआ तो उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिली।

आजादी के बाद 1947 में वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के ‘प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष’ नियुक्त किये गए। इसके पश्चात 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राष्ट्रपति की ओर से राज्यसभा का सदस्य नॉमिनेट किया गया और वह मुंगेर की गलियों से दिल्ली आ गए। 

दिनकर 1952 से लेकर 1964 तक कांग्रेस की ओर से 12 वर्ष तक संसद के सदस्य रहे, इसलिए वे पंडित नेहरू के बेहद करीबी भी थे। इसी दौरान चीन से भारत का संघर्ष हुआ और चीन के खिलाफ भारत की हर नीति फेल हुई। उसपर नेहरू के प्रशंसक होने के बावजूद दिनकर जी ने परशुराम की प्रतीक्षा लिख कर से नेहरू पर निशाना साधा था, वो पंक्तियां जो युद्ध के दौरान नेहरू पर लिखी गयी-

घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,

लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,

जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,

समझो, उसने ही हमें यहां मारा है

जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,

या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,

उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,

यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है

चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,

जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,

जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,

या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं;

यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,

भारत अपने घर में ही हार गया है। 

हालांकि बाद में उन्हें सन् 1964 से 1965 ई. तक ‘भागलपुर विश्वविद्यालय‘ का कुलपति के रूप में नियुक्त कर दिया गया और अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना ‘हिन्दी सलाहकार’ नियुक्त किया और फिर से दिल्ली बुला लिया।

दिनकर जी सरकारी तंत्र के खिलाफ इतना जमकर लिखते थे कि 4 वर्ष में ही 22 बार उनका अलग अलग जगह तबादला किया गया था। रामधारी सिंह जी का निधन 24 अप्रॅल 1974 बिहार को बेगूसराय में हुआ था।

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रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा (Ramdhari Singh Dinkar In Hindi)

रामधारी सिंह दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा जी गाँव के ही ‘प्राथमिक विद्यालय‘ से प्रारम्भ की, बाद में उन्होंने पास में ही बोरो नामक गांव में स्थित ‘राष्ट्रीय मिडिल स्कूल‘ में दाखिला ले लिया। इस स्कूल से इनके भीतर राष्ट्रीयता की भावना का बीज अँकुरित हुआ था।

1928में इन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा ‘मोकामाघाट हाई स्कूल‘ से हासिल की इसी बीच बेहद कम उम्र में डंकर जी का विवाह रामवक्षा ठाकुर की बेटी श्यामवती देवी के साथ करवा दिया गया था।

1928 में मैट्रिक पास करने के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास विषय से बी. ए. ऑनर्स किया। पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. ऑनर्स करने के बाद अगले ही वर्ष एक स्कूल में इन्होने ‘प्रधानाध्यापक‘ के रूप में काम शुरू कर दिया।

रामधारी सिंह दिनकर का हिंदी साहित्य में योगदान 

रामधारी सिंह दिनकर जी ने सामाजिक और आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ कविताओं के माध्यम से जबरदस्त आवाज उठाई की शोषणकरियो की नींदे उड़ गई। दिनकर जी ने एक प्रगतिशील और मानववादी कवि के रूप में खत्म हो चुके ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों में पुनः जीवित करने का काम किया।

दिनकर जी की सबसे महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम जैसी कालजयी रचनाएं शामिल है, रश्मिरथी में वे कर्ण के जीवन आदर्शों का वर्णन करते है, वे कर्ण के त्याग और किस्मत द्वारा कर्ण को जिंदगी के हर मोड़ पर किये गए छल और संयंत्रों का वर्णन करते है।

वही परशुराम की प्रतीक्षा में वे भारत चीन युध्द पर नेहरू की असफल नीतियों पर प्रहार करते है, इसके अतिरिक्त दिनकर जी ने अपने पारंपरिक वीर रस की कविताओं के अलावा उर्वशी जैसी सृंगार रस से ओतप्रोत कविता भी लिखी है लेकिन भूषण के बाद उन्हें वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है।

ज्ञानपीठ से सम्मानित उनकी रचना उर्वशी की कहानी मानवीय प्रेम, वासना और अप्सरा-इंसान सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। 

रामधारी सिंह दिनकर के पुरस्कार/सम्मान

दिनकर जी को उनकी रचना कुरुक्षेत्र के लिये काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तरप्रदेश सरकार और भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया। 1959 में उनकी रचना संस्कृति के चार अध्याय के लिये उन्हें साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया उसके बाद 1959 में ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें  पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

इसके अतिरिक्त उन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि से भी सम्मानित किया था। वर्ष 1972 में काव्य रचना उर्वशी के लिये उन्हें ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया। 1952 में वे राज्यसभा के लिए चुने गये और 1999 में उनकी स्मृति ओर भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया गया था।

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तो दोस्तों ये था Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay जिससे हमे कुछ सीखना चाहिए। हमे उम्मीद है की आपको रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय पसंद आया होगा।

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